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दुनिया में इससे ज्यादा सुंदर दूसरा शब्द नहीं है, दूसरी चीज़ नहीं है, दूसरा रिश्ता नहीं है।
इन्सान हो या जानवर! सबके लिए यह बात एक समान है। लेकिन विजय यह मानता नहीं था। उसका कहना था ये माँ बेटे, भाई बहनों के रिश्ते सिर्फ़ इन्सानों की दुनिया में होते हैं, जानवरों में नहीं होते। इसीलिए वह अपनी प्यारी माँ, जिसे वह भगवान से भी बढ़कर मानता था, के लाख बार मना करने पर भी जंगली जानवरों को पकड़ने का और मासूम बच्चों को उनकी माँओं से अलग करने का अपना शोक़, जो उसका धंधा भी था, छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।
माँ ने सोचा था कि एक दिन उसकी बहू आएगी तो विजय को सुधारेगी ओर उसे यह खतरनाक और पाप से भरा काम करने से रोकेगी। मगर उसकी यह आशा भी पूरी न हो पाई, क्योंकि विजय की प्रेमिका निम्मी ने उसे साफ़ कह दिया कि "मैं अपने पति के हाथ की तलवार बनके रहना पसंद करूंगी, उसके पाँव की जंजीर नहीं।" बिचारी माँ मन मसोस कर रह गई।
एक बार विजय एक हाथी के बच्चे को उसकी माँ से अलग करके पकड़ लेता है और सरकस वालों को बेच देता है। बच्चे से बिछड़ी हुई हथिनी अपने बच्चे की जुदाई में पागल सी हो जाती है और जंगल में एक बार अकेले मिले हुए विजय के पीछे पड़ जाती है। विजय अपनी जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़ जाता है। मगर ऐसा मालूम होता है कि हथिनी ने ठान ली थी कि वह उससे बदला लेकर ही रहेगी। वह पेड़ को जड़ से उखाड़ने की कोशिश करती है।
इसका परिणाम?
"देवर फ़िल्मस्" की शानदार भेंट "माँ" देखिए।
[From the official press booklet]